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उत्तरकाशी डीएम समेत अधिकारियों को हाईकोर्ट में पेश होने का आदेश, भागीरथी इको-सेंसिटिव जोन में अवैध निर्माण पर उठे सवाल

Authored by: Bhupendra Panwar
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Published on: 18 October 2025, 7:51 am IST
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उत्तरकाशी डीएम समेत अधिकारियों को हाईकोर्ट में पेश होने का आदेश, भागीरथी इको-सेंसिटिव जोन में अवैध निर्माण पर उठे सवाल

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भागीरथी नदी के किनारे इको-सेंसिटिव जोन में अवैध होटल और रिसॉर्ट्स के निर्माण को लेकर सख्ती बरती है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के दिशा-निर्देशों को दरकिनार कर दिए गए अनुमतियों के मामले में कोर्ट ने उत्तरकाशी जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) समेत संबंधित अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से 3 नवंबर को पेश होने का आदेश जारी किया है। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सरकार द्वारा पेश की गई रिपोर्ट से असंतुष्टि जाहिर की और पूर्ण सर्वेक्षण रिपोर्ट मांगी है।

जानिए क्या है पूरा मामला?

मामला उत्तरकाशी से गोमुख तक फैले 100 किलोमीटर के इको-सेंसिटिव जोन से जुड़ा है, जहां भागीरथी नदी के किनारे पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन करते हुए होटल, रिसॉर्ट और कैंप साइट्स का निर्माण हो रहा है। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने राज्य सरकार से सवाल किया कि एनजीटी के दिशा-निर्देशों का कितना पालन किया गया है? कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि एक विस्तृत रिपोर्ट अगली सुनवाई में प्रस्तुत की जाए।

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जनहित याचिका हिमालयन नागरिक दृष्टि मंच ने दायर की है, जिसमें गंगोत्री से उत्तरकाशी तक भागीरथी नदी के किनारे हो रहे अनियंत्रित निर्माणों पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि पर्यटकों को आकर्षित करने के नाम पर हिमालयी दृश्यों के पास ग्लेशियर क्षेत्रों में बिना वैज्ञानिक सर्वे के निर्माण अनुमतियां दी जा रही हैं। इससे हर साल आने वाली बाढ़ जैसी आपदाओं में जान-माल की हानि का खतरा बढ़ गया है।

याचिका में मांग की गई है कि किसी भी निर्माण से पहले क्षेत्र का वैज्ञानिक मूल्यांकन अनिवार्य हो, ताकि पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित हो सके। संगठन ने चेतावनी दी है कि ये निर्माण मानकों के खिलाफ हैं और उत्तरकाशी में बार-बार होने वाली आपदाओं का प्रमुख कारण बन रहे हैं।

सरकार का बचाव लेकिन कोर्ट नाराज

सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से दावा किया गया कि दी गई अनुमतियां सर्वेक्षण के बाद ही जारी की गई हैं। हालांकि, कोर्ट ने इस दलील पर संतुष्टि नहीं जताई और एक स्वतंत्र, पूर्ण सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। खंडपीठ ने जोर देकर कहा कि इको-सेंसिटिव जोन में कोई भी निर्माण पर्यावरणीय स्वीकृति के बिना नहीं हो सकता।

2012 का इको-सेंसिटिव जोन घोषणा

यह विवाद तब से चला आ रहा है जब 18 दिसंबर 2012 को भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने उत्तरकाशी से गंगोत्री तक के 100 किलोमीटर क्षेत्र को इको-सेंसिटिव जोन घोषित किया था। इस जोन में भागीरथी नदी के किनारे या वनाच्छादित इलाकों में किसी भी निर्माण के लिए इको-सेंसिटिव जोन कमेटी की अनुमति अनिवार्य है। यहां पर्यावरण संरक्षण के लिए सख्त नियम लागू हैं, जिनमें वन कटाई, प्रदूषण नियंत्रण और जैव विविधता संरक्षण शामिल हैं।

उत्तरकाशी डीएम को हाईकोर्ट में पेश होने का आदेश

एनजीटी के दिशा-निर्देशों के बावजूद, पर्यटन को बढ़ावा देने के चक्कर में नियमों का पालन नहीं हो रहा, जिससे हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप किया है। अगली सुनवाई 3 नवंबर को होगी, जहां डीएम और अन्य अधिकारी व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होंगे। यह मामला न केवल पर्यावरण संरक्षण का, बल्कि हिमालयी क्षेत्रों में टिकाऊ विकास का भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है।

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Bhupendra Panwar
Bhupendra Singh Panwar is a dedicated journalist reporting on local news from Uttarakhand. With deep roots in the region, he provides timely, accurate, and trustworthy coverage of events impacting the people and communities of Uttarakhand. His work focuses on delivering verified news that meets high editorial standards and serves the public interest.
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