भारत में पिछले कुछ सालों में जन्म पंजीकरण के आंकड़ों में काफी बदलाव देखने को मिले हैं। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की एक हालिया रिपोर्ट (लोकसभा में असितारा प्रश्न क्रमांक 3367) के अनुसार, 2013 से 2022 तक देश के अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जन्म पंजीकरण की संख्या में बड़ा अंतर आया है। जिनमें बिहार और उत्तराखंड में जन्म पंजीकरण बढ़ा है।
यह डेटा सांख्यिकी रिपोर्ट (SRS) 2022 पर आधारित है और यह न केवल जनसंख्या के रुझानों को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि जन्म पंजीकरण की प्रणाली कितनी बेहतर हुई है और कहां कमी बनी हुई है।
यह समझना जरूरी है कि ये आंकड़े उन जन्मों के हैं जो पंजीकृत हुए, न कि वास्तव में कितने बच्चे पैदा हुए। जन्म पंजीकरण में बढ़ोतरी या कमी का कारण बेहतर पंजीकरण सिस्टम, लोगों में जागरूकता, या जन्म दर में बदलाव हो सकता है। उत्तरी और पूर्वोत्तर राज्यों में जन्म पंजीकरण की संख्या बढ़ी है, क्योंकि वहां पंजीकरण की व्यवस्था सुधरी है। वहीं, दक्षिणी राज्यों में कमी का कारण कम जन्म दर हो सकती है।

उत्तराखंड और बिहार में बढ़ा जन्म पंजीकरण
बिहार और उत्तराखंड जैसे राज्यों में जन्म पंजीकरण में भारी बढ़ोतरी हुई है। इसका कारण ग्रामीण इलाकों में बेहतर पंजीकरण सुविधाएं, आधार कार्ड, और जननी सुरक्षा योजना जैसे सरकारी कार्यक्रम हो सकते हैं। असम, मेघालय, और त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में डिजिटल सिस्टम और जागरूकता अभियानों ने पंजीकरण को बढ़ाया है।
इन राज्यों में घटा पंजीकरण
तमिलनाडु, केरल, और गोवा जैसे दक्षिणी राज्यों में जन्म पंजीकरण कम हुआ है। इन राज्यों में लोग ज्यादा पढ़े-लिखे हैं, स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हैं, और जन्म दर भी कम हो रही है (प्रति महिला औसतन 1.5 बच्चे से कम)। हिमाचल प्रदेश और सिक्किम में शहरीकरण और शिक्षा के बढ़ते स्तर के कारण भी जन्म पंजीकरण में कमी देखी गई है।

यह डेटा दिखाता है कि भारत की जनसंख्या का स्वरूप बदल रहा है। उत्तरी और पूर्वी राज्य अभी भी ज्यादा जन्म दर वाले चरण में हैं, जबकि दक्षिणी राज्य कम जन्म दर के कारण जनसंख्या स्थिरीकरण की ओर बढ़ रहे हैं। CRS रिपोर्ट के अनुसार, देश में जन्म पंजीकरण की दर 93% से ज्यादा हो गई है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में अभी भी सुधार की जरूरत है।