4 साल बाद शुरू हुई कैलाश मानसरोवर यात्रा, पर्यटन मंत्री ने बताया ऐतिहासिक क्षण
उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने 4 साल के लंबे अंतराल के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू कर दिया है। 2020 में भारत और चीन के बीच एलएसी पर तनाव के कारण चीन ने भारतीय तीर्थयात्रियों पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे, जिसके चलते इस यात्रा पर रोक लगा दी गई थी। 3 अक्टूबर 2024 को पहली बार भारतीय तीर्थ यात्री उत्तराखंड की धरती से कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के दर्शन कर पाए।
कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए दल रवाना
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से 5 तीर्थयात्रियों का पहला दल, जिसमें मध्यप्रदेश, राजस्थान और पंजाब के श्रद्धालु शामिल थे, हेलीकॉप्टर द्वारा कैलाश पर्वत के लिए रवाना हुआ। 5,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पुरानी लिपुलेख चोटी से इन श्रद्धालुओं ने कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के दर्शन किए और भगवान शिव के चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके साथ ही आदि कैलाश और ओम पर्वत के दर्शन भी करवाए गए।
दो अक्तूबर से शुरू
यह यात्रा महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर शुरू की गई थी और यात्रा का प्रमुख आकर्षण था – कैलाश मानसरोवर का दर्शन भारतीय धरती से। पुरानी लिपुलेख चोटी, जहां से ये दर्शन संभव हुए, कुछ महीनों पहले ही उत्तराखंड पर्यटन विभाग, सीमा सड़क संगठन (BRO) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के अधिकारियों द्वारा खोजी गई थी। इसके बाद, सरकार ने 5 दिन और 4 रातों की यात्रा का पैकेज तैयार किया, जिसमें श्रद्धालु हेलीकॉप्टर द्वारा पिथौरागढ़ से गुंजी होकर दर्शन कर सकते हैं।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मौके पर कहा, “यह यात्रा राज्य सरकार और केंद्रीय एजेंसियों की दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाती है। अब भगवान शिव के भक्तों को कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा। वे भारतीय सीमा से ही दर्शन कर अपनी श्रद्धा अर्पित कर सकते हैं।
सतपाल महाराज ने बताया ऐतिहासिक
उत्तराखंड पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने इसे ऐतिहासिक क्षण बताते हुए कहा, “कठिन परिस्थितियों के चलते 2020 में कैलाश मानसरोवर यात्रा रोक दी गई थी, लेकिन हमारी सरकार, ITBP और BRO के सहयोग से इस वैकल्पिक यात्रा योजना को साकार किया गया। यह केवल प्रारंभ है, भविष्य में और अधिक तीर्थयात्रियों को शामिल किया जाएगा और सुविधाएं भी बढ़ाई जाएंगी। यह न केवल एक धार्मिक यात्रा का पुनः आरंभ है, बल्कि भारत की सीमाओं से ही कैलाश पर्वत के दर्शन करवाने की ऐतिहासिक पहल भी है।