उत्तराखंड: आईएएस नितिका खंडेलवाल पर गलत दस्तावेज लगाकर नौकरी पाने का आरोप

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भारत में इस समय पुणे की ट्रेनी आईएएस अधिकारी पूजा खेडेकर इसका नाम चर्चाओं में हैं। जिसका कारण उन पर फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से IAS की नौकरी लेने का आरोप है। इसके अलावा अन्य कई आईएएस अधिकारियों के नाम भी सोशल मीडिया पर सुर्खियों में है। इसी बीच उत्तराखंड की आईएएस नितिका खंडेलवाल की एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है इसके बाद उन पर भी फर्जी दस्तावेज देकर नौकरी लेने का आरोप लगाया जा रहा है, साथ ही उनकी दिव्यांगता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।

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दरअसल सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा, जिसमें यह दावा किया जा रहा कि आईएएस नितिका खंडेलवाल का चयन 2015 बैच की दृष्टिबाधित (VI) दिव्यांग केटेगरी में चयन हुआ है लेकिन वीडियो में वह एक सिम्यूलेटर पर ड्राइविंग टेस्ट देती नजर आ रही है। जिसके बाद यह आरोप लगाया जा रहा कि दृष्टि दिव्यांग होने के बावजूद आखिर नितिका ने चश्मा क्यों नहीं लगाया है। और इसे लेकर उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जा रहा।

इस रोग से ग्रसित है आईएएस नितिका खंडेलवाल

नितिका खंडेलवाल कोन रॉड डिस्ट्राफी रोग से पीड़ित हैं। यह आंख की गंभीर बीमारी है जिसमें समय के साथ-साथ इंसान की आंखों की रोशनी खत्म हो सकती है। इसमें धीरे-धीरे रेटिना की प्रकाश-संवेदी कोशिकाएं खराब होने लगती है। बताया जा रहा कि यह बीमारी 40 हजार लोगों में से एक को होती है।

हालांकि मीडिया में दिए एक बयान में उनका कहना है कि एक कथित फर्जी दस्तावेजों का मामला सुर्खियों में आने का मतलब यह नहीं कि लोग सभी दिव्यांग लोगों को जज करने लगे। ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपनी दिव्यांगता के बावजूद UPSC पास करने के लिए कड़ी मेहनत की और सभी दिव्यांग का मीडिया ट्रायल नहीं होना चाहिए।

2019 का है वीडियो

उनका कहना है कि आरटीओ ड्राइविंग टेस्ट हेडिंग का यह वीडियो उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल पर 13 नवंबर 2019 को अपलोड किया था। जिसे करीब 19 लाख से अधिक लोग देख चुके हैं। उसे दौरान वह रुड़की में एसडीएम थी और यह वीडियो आरटीओ रुड़की के कार्यालय के निरीक्षण का है। जिसे गलत तरीके से प्रसारित किया जा रहा है।

हालांकि अभी तक यह तक चर्चाएं सोशल मीडिया तक की सीमित है। शासन में इस तरह की कोई शिकायत दर्ज नहीं हुई है। अपर मुख्य सचिव कार्मिक आनंद वर्धन ने कहा कि किसी भी अधिकारी की इस प्रकार की कोई शिकायत शासन को प्राप्त नहीं हुई है। यदि ऐसा कोई प्रकरण होता भी है तो उस पर भारत सरकार और संघ लोक सेवा आयोग को ही निर्णय लेना होता है।

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