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Uttarakhand News: सैनिकों के नाम पर वोट तो चाहिए लेकिन टिकट देने में अनदेखी, कहीं वोट बैंक बनकर तो नहीं रह गए सैनिक

सैनिकों का वोट लेने के लिए चुनाव से ठीक पहले भाजपा शहीद सम्मान यात्रा तो कांग्रेस द्वारा कई सम्मेलन कराए जा चुके हैं, लेकिन जब प्रतिनिधित्व की बात आई तो टिकट देने से सभी पार्टियों ने अनदेखा कर दिया।

Uttarakhand News:  उत्तराखंड को सैन्य बहुल प्रदेश कहा जाता है तो सेना के नाम पर सियासत होना लाजमी है क्योंकि सैनिकों का सीधा असर पूरे देश पर होता है। तो चुनाव के समय सभी पार्टियों इस अवसर को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ती लेकिन जब टिकट देने की बारी आती है तो सभी पार्टियां अपने हाथ पीछे खींच लेती है, जबकि सियासत संभालने का मौका जब भी पूर्व सैनिकों को मिला तो उन्होंने बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभाई। यह वजह है कि आज भी उत्तराखंड में पूर्व भुवनचंद खंडूरी का कार्यकाल याद किया जाता है लेकिन इस लोकसभा चुनाव में जब उन्हें प्रतिनिधित्व देने का समय आया तो सभी दलों ने उनकी अनदेखी कर ली और सैनिक, भूतपूर्व सैनिक और उनके परिवार केवल वोट बैंक बनकर रह गए।

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उत्तराखंड में युवाओं की पहली पसंद सेना में शामिल होना है यही वजह है कि सेना का हर पांचवां जवान उत्तराखंड से है। ऐसे में सैन्य बहुल प्रदेश होने के नाते यहां सैनिकों के नाम पर सियासत होना कोई बड़ी बात नहीं है। राज्य में पूर्व सैनिकों की संख्या करीब डेढ़ लाख से अधिक है और अर्द्धसैनिक बलों के के करीब 70 हजार पूर्व सैनिक है ऐसे में सभी पार्टियों की नजर उनपर है और यही कोई पार्टी इन वोटों को अपने पक्ष में कर पाने में सक्षम रही तो लोकसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित है। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा, कांग्रेस समेत अन्य दल पूर्व सैनिकों को रिझाने की कोशिश कर रही है। सैनिकों का वोट लेने के लिए चुनाव से ठीक पहले भाजपा शहीद सम्मान यात्रा तो कांग्रेस द्वारा कई सम्मेलन कराए जा चुके हैं, लेकिन जब प्रतिनिधित्व की बात आई तो टिकट देने से सभी पार्टियों ने अनदेखा कर दिया।

Patrika News Desk

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