उत्तराखंड में कौन-कौन से धार्मिक स्थल है? उत्तराखंड के ऐतिहासिक स्थल

धार्मिक और सांस्कृतिक रुप से उत्तराखंड का अलग महत्व है। प्रतिवर्ष होने वाली चार धाम यात्रा में यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। उत्तराखंड वहीं भूमि है जहां पांडवों ने अज्ञातवास बिताया था, जहां महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की और यही से युधिष्ठिर ने स्वर्ग की ओर अंतिम यात्रा की थी। इसलिए उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता जाता है क्योंकि यहां के कण-कण में इतिहास की गूंज ओर आध्यात्मिक ऊर्जा समाई हुई है। वैसे तो उत्तराखंड के ऐतिहासिक स्थल किसी पहचान के मोहताज नहीं लेकिन यहां हम आपको उन्हीं में कुछ धार्मिक स्थलों के बारे में बताने जा रहे हैं।

उत्तराखंड के ऐतिहासिक स्थल

प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर होने के साथ-साथ उत्तराखंड में ऐतिहासिक स्थल की भी भरमार है। तो चलिए जानते हैं उन ऐतिहासिक स्थलों के बारे में।

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व्यास पोथी- यह एक पवित्र शिला है जो प्राक रुप से किताब के पन्नों जैसी लगती है। ऐसा माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने यही महाभारत का पाठ किया था।

व्यास पोथी

पांडुकेश्वर मंदिर- राजा पांडु को समर्पित पांडुकेश्वर मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। मान्यता है कि इसी क्षेत्र में पांडवों का जन्म हुआ और यहां राजा पांडु ने तपस्या की थी। इस स्थान को साधना और शांति का केंद्र माना जाता है।

माणा गांव- उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम के पास स्थित माणा गांव को भारत का प्रथम गांव भी कहा जाता है। यही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी और भगवान गणेश ने उसे लिपिबद्ध किया था। आज भी यहां गणेश गुफा और व्यास गुफा देखी जा सकती है।

लाखामंडल- महाभारत की सबसे बड़ी षड्यंत्र लाक्षागृह के बारे में आपने जरूर सुना होगा। तो बता दे कि उसी षड्यंत्र की साज़िश यही रची गई यह। यह जो प्राचीन शिवलिंग और मूर्तियां हैं उन्हें महाभारत काल की मानी जाती है।

भीम पुल – माता गांव के पास स्थित भीम पुल विशाल चट्टानों से बना है। कहां जाता है कि जब द्रोपदी स्वर्गारोहण के दौरान सरस्वती नदी पार नहीं कर पा रही थी तो भीम ने अपनी गदा से यह पुल बना दिया था।

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