Uttarakhand History: माणा गांव तहसील जोशीमठ, जिला चमोली, उत्तराखंड में स्थित है। माणा गांव (Mana Gaon) तिब्बत की सीमा पर स्थित है और माना दर्रा से पहले भारत का प्रथम ग्राम है। यहां से तिब्बत की सीमा 26 किमी दूर है। अलकनंदा नदी और सरस्वती नदी का संगम यहां मौजूद हैं। चमोली पर्वतीय राज्य उत्तराखंड का एक जिला है। अलकनंदा नदी के पास बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। यहां की प्रसिद्ध (Uttarakhand History) नदी अलकनंदा नदी है यह तिब्बत की जासकर श्रेणी से निकलती है। माना दर्रा हिमालय का एक प्रमुख दर्रा है और यह भारत चीन की सीमा पर स्थित है। माना दर्रा एनएच 58 का अंतिम हिस्सा है। इसके अन्य नाम माना-ला,चिरबितया, चिरबितया-ला और डोंगरी-ला भी है। भारत की तरफ से यह उत्तराखंड के चार धाम में से एक बद्रीनाथ धाम के समीप है। मानसरोवर झील और कैलाश जाने का रास्ता यहीं से होकर जाता है। माना दर्रा की ऊंचाई 5,545 मी. है।
माणा गांव का रोचक इतिहास
माणा गांव करीब 19000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है इस गांव का नाम मणिभद्र देव के नाम पर माणा पड़ा था। पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार यह भारत का एकमात्र गांव है जो चारों धामों में भी सबसे पवित्र माना जाता है। यहां के स्थानीय लोगों के अनुसार यह गांव शापमुक्त और पापमुक्त माना जाता है। पहले इस गांव को भारत का आखिरी गांव कहा जाता था लेकिन कुछ समय पहले से यह गांव भारत के पहले गांव के नाम से जाना जा रहा है।
रंडपा जाति के लोग है स्थानीय निवासी
माणा गांव में रहने वाले लोग रंडपा जाति के लोग हैं। गांव के बारे में पहले केवल चुनिंदा लोगों को ही पता था परंतु जब से पक्की सड़क का निर्माण हुआ है तब से हर कोई इस गांव के बारे में जानता है। माणा गांव में निवास करने वाली यह जाति मुख्य रूप से भोटिया जनजाति से ताल्लुक रखती है। रंडपा का तिब्बती भाषा में मतलब रंड यानि -घाटी और पा मतलब रहना या बसना हैं। अर्थात माणा गांव में बसने वालों को नीरी रंडपा या डूनी रंडपा कहते हैं।
माणा गांव का महाभारत काल से रिश्ता
बद्रीनाथ के समीप स्थित मारा गांव का संबंध महाभारत काल से हैं। इसके साथ साथ गांव का रिश्ता भगवान गणेश के साथ भी जुड़ा हुआ है। मान्यता अनुसार इसी गांव से होकर पांडव स्वर्ग की ओर गए थे। इसका प्रमाण है भीम पुल जो सरस्वती नदी और अलकनंदा नदी के मिलन के स्थान पर स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के पांडव अंतिम समय स्वर्गारोहण की यात्रा पर निकल गए थे। उस दौरान उन्हें बद्रीनाथ मंदिर के पास एक स्थान से होकर गुजरना था। इसी स्थान पर उन्हें सरस्वती नदी को पार करना था। द्रौपदी को नदी को पार करने में परेशानी हो रही थी। जिसके कारण भीम ने बड़ी चट्टान नदी की धारा के ऊपर रख दी थी जिसने एक सेतु का काम किया था। वर्षों बाद भी आज के समय में वह पुल ज्यों का त्यों नदी के ऊपर ही स्थित है।
माणा गांव आने से दूर होती है गरीब
इस गांव से बहुत सी मान्यताएं जुड़ी हुई है जिसमें से एक यह है कि यहां आने वाले हर व्यक्ति की गरीबी दूर हो जाती है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि स्थानीय लोगों के अनुसार इस गांव को भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद मिला हुआ है। इसी कारण कहा जाता है कि जो भी यहां आएगा उसकी गरीबी दूर हो जाएगी। इस वजह से यहां हर साल बड़ी संख्या में लोग आते हैं
गांव में पड़ती है कड़ाके की ठंड
माणा गांव में कड़ाके की ठंड पड़ती है। साल में 6 महीने पूरा क्षेत्र बर्फ से ढका रहता है। शरद ऋतु शुरू होने से पहले यहां के रहने वाले ग्रामीण लोग नीचे स्थित चमोली जिले के गांव में चले जाते हैं। मौसम की खराब स्थिति के कारण यहां के एकमात्र इंटर कॉलेज की 6 महीने माणा में और 6 महीने चमोली में पढ़ाई जारी रहती है।
फसल उगाने के लिए बेहतर जमीन
हालांकि यह गांव 6 महीने केवल बर्फ से ढका रहता है लेकिन अप्रैल-मई में जब बर्फ पिघल जाती है तब ग्रामीण लोग खेती का कार्य शुरू कर देते हैं। यहां की मिट्टी आलू की खेती के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है इसके साथ जौ और थापर भी यहां उगाए जाते हैं। फसलों के साथ-साथ यहां गांव में भोजपत्र भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं जो बद्रीनाथ में बिकते भी हैं। खेती के कार्य के लिए ग्रामीण लोग पशुओं का पालन भी करते हैं। पहले यहां भेड़-बकरियां पाई जाती थी किंतु उन्हें शरद ऋतु में नीचे ले जाने में होने वाली परेशानी को देखते हुए उनकी संख्या काफी कम हो गई है।
गांव में मिलती है विभिन्न जड़ी बूटियां
माणा गांव में बहुत सी जड़ी बूटियां मिलती है जिसके लिए काफी प्रसिद्ध है। इस बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। गांव में मिलने वाली जड़ी बूटियां-
- बालछड़ी- यह जड़ी बूटी बालों में हुई रूसी को खत्म करती है और उन्हें स्वस्थ रखने के काम आती है।
- खोया- खोया की पत्तियों की सब्जी बनती है जिसे खाने से पेट साफ हो जाता है। पाचन तंत्र से जुड़ी परेशानियों के लिए पीपी की जड़ भी काफी कारगर साबित होती है। इसकी जड़ को पानी में उबालकर पीने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।
- पाखान जड़ी- पाखान जड़ी को नमक और घी के साथ चाय बनाकर पीने से पथरी की समस्या हमेशा के लिए दूर हो जाती है।
लकड़ी से बनाए जाते हैं घर
गांव की आबादी 400 के आसपास है और यहां केवल 60 घर है। गांव में बने ज्यादातर घर दो मंजिला है और उन्हें बनाने में लकड़ी का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। घरों की छत पत्थर के पटालों की बनी होती है। इस तरह के घर भूकंप के झटकों को आसानी से झेल लेते हैं। घरों में निचले हिस्से में पशु रहते हैं और ऊपर की मंजिल में लोग रहते हैं।