उत्तराखंड में गुलदार के हमलों के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। राज्य के सभी जिलों में वन्यजीव हमलों की घटना घट चुकी है। साल 2000 से लेकर साल 2022 तक हजारों लोग मानव-वन्यजीव संघर्ष में अपनी जान गवां चुके हैं।
सामान्य भाषा में वन विभाग का कार्य जंगलों की देखभाल और सुरक्षा करना होता है। वन विभाग के अधिकारियों की यह जिम्मेदारी भी होती है कि वह योजना बनाकर जंगली जानवरों और मनुष्यों के बीच चल रहे खूनी संघर्ष को भी खत्म करें। परंतु पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में बढ़ रहे वन्यजीवों के हमले और मौत की घटनाएं दर्शाती है कि उत्तराखंड वन विभाग अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहा है।
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उत्तराखंड राज्य के गठन का मूल कारण था मुलायम सिंह यादव द्वारा राज्य के साथ की गई अनदेखी और गैर जिम्मेदाराना रवैया। लेकिन, अगर मानव और वन्यजीव के बीच हुए खूनी संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करें तो राज्य के वन विभाग का कार्य बिल्कुल भी सराहनीय नहीं हैं।
गुलदार के हमलों से परेशान
राज्य के लगभग सभी जिलों में बच्चों से लेकर बूढ़े तक गुलदार का शिकार हुए हैं। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है जैसे वन विभाग के अधिकारियो को इन पीड़ित परिवारों से कोई मतलब ही नहीं है। किसी भी गांव में गुलदार या बाघ के हमले की घटना के बाद वन विभाग द्वारा शोध, सर्वे और मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करने की बात तो की जाती है लेकिन इससे संबंधित कार्य होते हुए नजर नहीं आते हैं।
राज्य के गठन के बाद से हजारों लोगों की गई जान
राज्य का गठन साल 2000 में हुआ था। इसके बाद से साल 2022 तक हजारों लोगों ने वन्यजीवों के हमले में जान गंवा दी है। आंकड़ों के आधार पर साल 2000 से लेकर 2022 तक 1,055 लोगों ने अपनी जान गंवा दी है। इसके अलावा 2006 से 2022 तक 4,375 लोग घायल भी हो गए है।
हर जिले में फैली हुई है दहशत
राज्य के हर जिले में वन्यजीवों से संबंधित घटनाएं हुई है। गुलदारों के हमले के मामले में कुमाऊं के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर के अलावा गढ़वाल के पर्वतीय जिले शामिल है। इसके बावजूद भी उत्तराखंड वन विभाग के पास मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए कोई प्रभावी योजना नहीं दिखती है।