Jageshwar Temple: उत्तराखंड में ऐसे कई तीर्थ स्थल है जो अपनी अनोखी महिमा और मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। इसलिए उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है। ऐसा ही एक मंदिर अल्मोड़ा जनपद में स्थित है। वृद्ध जागेश्वर(Jageshwar Temple) के नाम से प्रसिद्ध मंदिर में दूर-दूर से लोग आते हैं। मान्यता अनुसार विभिन्न राज्य के श्रद्धालु अपनी संतान सुख की इच्छा लेकर मंदिर में पूजा अर्चना करने आते हैं। पुराने समय से मनोकामना पूरे होने पर मंदिर में मालपुए का भोग चढ़ाने की रीत चली आ रही है।
भगवान शिव को समर्पित है मंदिर
जागेश्वर मंदिर अल्मोड़ा से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर 9वीं शताब्दी का है, जहां केवल उत्तराखंड ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु आते हैं। मंदिर में स्थापित स्वयंभू शिवलिंग में भगवान शंकर विराजमान है। भोले बाबा अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं और उन्हें संतान सुख का आशीर्वाद देते हैं।
यह भी पढ़ें: SDG Report में Uttarakhand बना अव्वल, वास्तविकता में हुआ fail
इसलिए पड़ा मंदिर का नाम वृद्ध जागेश्वर
मंदिर के इतिहास के अनुसार भगवान भोलेनाथ ने 7वीं शताब्दी में वृद्धावस्था में उस समय के राजा उदय चंद को दर्शन दिए थे। इस वजह से मंदिर को वृद्ध जागेश्वर नाम से जाना जाता है। मंदिर के पुजारी के अनुसार जिन लोगों को संतान सुख नहीं है, उन्हें इस मंदिर में आकर पूजा अर्चना जरूर करनी चाहिए। साथ ही मनोकामना पूरी होने पर मंदिर में आकर मालपुए का भोग जरूर चढ़ाना चाहिए।
मंदिर को पांचवा धाम भी कहा जाता है
जागेश्वर मंदिर को उत्तराखंड का पांचवां धाम भी कहा जाता है। जागेश्वर धाम को भगवान की तपोस्थली भी माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग आठवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर शिवलिंग पूजा के आरंभ का गवाह भी माना जाता है। इतना ही नहीं इस धाम का उल्लेख स्कंद पुराण शिव पुराण और लिंग पुराण में भी मिलता है। यहां भगवान शिव के साथ सप्तर्षियों ने भी तपस्या की थी।
लव-कुश ने यहां यज्ञ आयोजित किया था
ऐसा भी माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान राम और माता सीता के पुत्र लव-कुश ने यज्ञ आयोजित किया था। उन्होंने यहां देवी देवताओं को आमंत्रित किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि लव कुश ने इस मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर में लगभग ढाई सौ छोटे बड़े मंदिर है। यहां मंदिरों का निर्माण पत्थरों की बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है।