देहरादून। उत्तराखंड में मतदाता सूची को और मजबूत बनाने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की तैयारियां तेज कर दी हैं। यह प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो सकती है, जिससे लाखों मतदाताओं को अपनी जानकारी अपडेट करनी पड़ेगी। खासकर युवा और हाल ही में जुड़े मतदाताओं को दस्तावेज जमा करने में मुश्किलें आ सकती हैं, लेकिन इससे चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी बनेगी।
निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के मुताबिक, SIR का मकसद पुरानी मतदाता सूची से तुलना करके फर्जी नामों को हटाना और नई जानकारी को सत्यापित करना है। अभी 2003 की मतदाता सूची को 2025 वाली से मिलाया जा रहा है, ताकि दोहराव पकड़ा जा सके। मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने हाल ही में राजनीतिक दलों के साथ बैठक की, जहां जनवरी 2026 की अर्हता तिथि पर आधारित इस अभियान की रूपरेखा तय हुई।
आयोग का अनुमान है कि इससे 50-60 फीसदी मतदाताओं का सत्यापन आसानी से हो जाएगा। लेकिन इसकी सबसे बड़ी चुनौती उन मतदाताओं के लिए है, जिनके नाम हाल के वर्षों में जुड़े हैं। इन्हें 11 तरह के दस्तावेज जमा करने पड़ेंगे, जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट या ड्राइविंग लाइसेंस। अगर मतदाता की उम्र 38 साल से ज्यादा है और 2003 की सूची में नाम नहीं है, तो पूरा सेट देना होगा। वहीं, 18-19 साल के युवाओं को अपना और माता-पिता का एक-एक दस्तावेज दिखाना जरूरी होगा। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग, खासकर पहाड़ी क्षेत्रों के मतदाता, जहां दस्तावेज जुटाना मुश्किल होता है, सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। आयोग ने बूथ लेवल एजेंट्स (बीएलए) नियुक्त करने को कहा है, लेकिन अभी सिर्फ 2744 बीएलए ही सक्रिय हैं, जबकि 11,733 बूथों की जरूरत है।
मतदाताओं को सलाह दी जा रही है कि वे तुरंत अपनी जानकारी चेक करें। अगर जिला या पता बदला हो, तो बूथ अधिकारी को सूचित करें। 2003 की सूची आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध है, जहां नाम ढूंढना आसान है। SIR फरवरी 2026 तक चल सकता है, जैसा बिहार और उत्तर प्रदेश में हो रहा है। इससे न केवल वोटर लिस्ट साफ होगी, बल्कि लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होंगी। लेकिन अगर दस्तावेजों की कमी हुई, तो नाम कटने का खतरा भी है।
