उत्तराखंड में लंबे समय से सख्त भू कानून लागू करने की मांग की जा रही है। इस मामले में जहां धामी सरकार काफी गंभीर नजर आ रही वहीं अफसरशाही बेपरवाह नजर आ रहे हैं। हाल यह है कि शासन द्वारा मांगी गई भूमि की खरीद-फरोख्त की रिपोर्ट को भेजने में कोई भी जिलाधिकारी गंभीर नहीं दिखे और ना ही प्रशासन को कोई रिपोर्ट भेजी।
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दरअसल उत्तराखंड सरकार यह पता लगाना चाह रही थी कि किन बाहरी लोगों ने ( उत्तर प्रदेश विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 ) ( अनुकूलन एवं उपातरण आदेश 2001 ) में किए गए संशोधन के विपरीत उत्तराखंड में सीमा से अधिक भूमि खरीदी गई। वर्ष 2007 में अधिनियम में यह संशोधन हुआ था कि निकाय क्षेत्रों से बाहर राज्य में कोई भी व्यक्ति स्वयं या परिवार का घर बनाने के लिए अधिकतम 250 वर्ग मीटर भूमि खरीद सकता है।
इस मामले में उत्तराखंड सरकार को यह शिकायतें मिली कि एक ही परिवार के सदस्यों ने अलग-अलग भूमि खरीदकर अधिनियम के प्रावधानों का उल्लघंन किया है। जिसके बाद मुख्य सचिव ने इन मामलों की जांच कर रिपोर्ट देने को कहा था, साथ ही अन्य प्रयोजनों से खरीदी गई भूमि के उचित उपयोग का भी ब्यौरा मांगा था।
मुख्य सचिव द्वारा भूमि की खरीद-फरोख्त को लेकर यह आदेश राजस्व परिषद के आयुक्त एवं सचिव और गढ़वाल-कुमाऊं के आयुक्तों को भी भेजा था लेकिन राजस्व परिषद को एक भी जिले से अभी तक रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई।
इस मामले में राजस्व परिषद के आयुक्त एवं सचिव चंद्रेश यादव का कहना है कि वह राज्य से बाहर है और इस मामले में सात नवंबर को वापस लौटने के बाद ही ताजा जानकारी बताने की स्थिति में होंगे।